गंगा-यमुना-सरस्वती की पावन नगरी प्रयागराज है, आज से करीब 444 सालों पहले संगम नगरी इलाहाबाद का नाम प्रयागराज था,
मुगल सम्राट अकबर ने 1583 में प्रयागराज का नाम बदल कर इलाहाबाद रख दिया था, जो कि अरबी और फारसी के दो शब्दों से मिलकर बना है,
जिसमें अरबी शब्द इलाह था (अकबर द्वारा चलाये गए नये धर्म दीन-ए-इलाही के सन्दर्भ से, अल्लाह के लिए) और फारसी से आबाद (अर्थात बसाया हुआ) शब्द लिया गया था
जिसका अर्थ था ’ईश्वर द्वारा बसाया गया’, या ’ईश्वर का शहर’।
प्रयागराज को लोग तीर्थों का राजा (तीर्थराज) के नाम से जानते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार, यहाॅं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था।
इस प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और इस स्थान का नाम प्रयागराज पड़ा। प्रयागराज में भगवान श्री विष्णु के बारह स्वरूप विध्यमान है,
जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है।
हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती हैं,
अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहाॅं प्रत्येक बारह वर्ष में कुम्भ मेला लगता है।
प्रयाग का वर्णन तुलसीदास की रामचरित मानस और बाल्मिकी की रामायण मंे भी है, यही नहीं सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक पुराण मत्स्य पुराण के 102 अध्याय से लेकर 107 अध्याय तक में इस तीर्थ के महात्म्य का वर्णन है।